हिमालय
उत्तर उत्तुंग हिमालय, दक्षिण अथाह सागर ।
कल-कल निनादमय, नदियां हैं भरतीं गागर।।
धन-धान्य पूर्ण वैभव,शस्य श्यामला धरा का।
उर्वरा यहाँ भूमि, जो फसलों में हो उजागर।।
विख्यात शिल्प पुराना,यह देवों की है भूमि।
मंदिर हैं स्वऊर्जित , रवि रश्मियों की झालर।।
एक स्वप्न सी ये सृष्टि, मृग मरीचिका में दृष्टि।
परिवार नन्हे बच्चे,भरते रंग खिलखिला कर।।
‘मीरा ‘ने देखे पर्वत, पर्वत पे झांकते दिवाकर।
सुख मिलता है इन्हीं संग,सर्वस्व निज लुटाकर।।