हिन्दोस्ताँ हमारा
हमारे मुल्क़ की मिट्टी से आती ख़ुशबू है
कहीं गंगा कहीं जमुना तो कहीं सरयू हैं।
हमारा मुल्क़ तो त्योहारों का जादू हैं
कहीं लोहड़ी कहीं पोला तो कहीं बिहू हैं।
हमारे मुल्क़ में भाषाएँ बहुत सारी हैं
और हर भाषा अपने-आप में ही प्यारी हैं।
हर एक कोस में बदलता यहाँ का पानी
और चार कोस में बदल जाती है वाणी।
कितनी ही जातियाँ हैं और जन-जातियाँ हैं
कहीं कोरी कहीं लोथा कहीं कालबेलिया हैं।
हम अलग होकर भी एक जैसे लगते हैं
बजते बर्तन की तरह साथ मगर रहते हैं।
हमारे मुल्क़ के लोगों में भाईचारा हैं
दुनिया के नक्शे पे हिन्दोस्ताँ सितारा है।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’