हिन्दी सूर्य हमारा है
अलंकार और रस से सज्जित,
प्यारी भाषा हिंदी है।
भाव अनेक समाहित जिसमें,
विस्मयकारी हिंदी है।
संस्कृत से उत्पन्न हुई है,
कालजयी एक तारा है।
वैदिक युग से बहती आये,
सतत् सनातन धारा है।
बड़ी मनोरम भव्य सुभाषित,
सरल सुभीता हिन्दी है।
जन – जन के कंठो से उद्भित,
परम पुनीता हिंदी है।
पाली भी यह प्राकृत भी यह,
वृहद गुनी विज्ञानी है।
मृदुल सुहानी इसकी वाणी,
महिमा कहां बखानी है।
सूर,कबीरा तुलसी के,
छंदों की भाषा हिन्दी है।
क्रांति की अलख जगाये जो,
कलमो की भाषा हिन्दी है।
प्रेमचंद की नैतिकता का,
ज्ञान कराती हिंदी है।
बुद्ध जैनियों शैव मतों का,
भान कराती हिंदी है।
गांधीजी का यह सपना है,
जन गण की अभिलाषा है।
समता स्नेह समन्वय की,
हिंदी सुंदर परिभाषा है।
परिवर्तन का है दीपक यह,
यह मिट्टी से नाता है।
भारत का कण-कण हिंदी है,
भारत भाग्य विधाता है।
हिंदी से दूरी करके हम,
ना जाने क्या – क्या खो बैठे।
अपने शब्दो से दूरी कर
अपना अस्तित्व डुबो बैठे।
अवहेलक बनकर समाज,
वंचित हिंदी से हो बैठा।
सहज सुलभ संस्कृतियों से,
किंचित यह नाता खो बैठा।
यह विसंगति समाज की ही,
माता को दोषित करते हैं।
अपनों का करके तिरस्कार
दूजों को पोषित करते हैं।
‘पर भाषा ‘पर ना रोष कोई,
पर हिंदी गर्व हमारा है।
सारी भाषाएं उज्जवल है,
पर हिंदी सूर्य हमारा है।
पर हिंदी सूर्य हमारा है।
©Priya Maithil