हिन्दी साहित्य का फेसबुकिया काल
हिन्दी साहित्य का फेसबुकिया काल
(हास्य कविता)
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आया है अब तो,हिंदी साहित्य का फेसबुकिया काल,
सोशल मीडिया पर हो रहा,रोज नया धमाल।
कोरोना काल से अभिशप्त,जो मानव था,
हो गए उनके ज़ज्बात,जब मन में कुंठित।
तो चीरती सन्नाटों में कलम को पकड़े,
साहित्य जगत में होने लगे,रोज नए सृजन निर्मित।
लाॅकडाउन से जो परेशान था गृहस्थी रथ,
अब साहित्य जगत की ओर मुड़ने लगा ।
पतिदेव ने जब कलम पकड़ी,
तो काव्य की गूँज,
दूर तलक सुनाई देने लगी बेहिसाब।
पत्नी भी कहाँ पीछे रहने वाली,
सब कामकाज निपटा,
वीडियो रील और लाइव को रहने लगी बेताब।
फिर तो हुआ सोशल मीडिया पर,
हर तरफ धमाल ही धमाल निशिदिन।
फेसबुकिया ग्रुपों में अब देखो,
साहित्य सृजन की कैसे होड़ मची प्रतिदिन ।
देवभाषा संस्कृत की कोख से निकली हिन्दी,
अब समृद्ध हो रही सेकुलर उर्दू से दिन-ब-दिन।
जब डेढ़ जी बी फ्री डाटा का होने लगा,
पूरा का पूरा इस्तेमाल।
तो साहित्य जगत हुआ,
पुरस्कार और सम्मान से मालामाल।
जिसका सितारा गर्दिश में था ,
वो बन गया उभरता सितारा।
पुराने कवि और लेखक ये सब जानकर ,
करने लगे खुद को किनारा ।
जिसे बोलना ही नहीं आता कभी,
वो बन गए बातचीत में माहिर ।
एडमिन और मोडरेटर की तो मत पुछो ,
उनकें नखरे अब जगजाहिर ।
कवि मन कभी निराश न होना जग से,
सच्चे दिल से तुम सृजन करो,बनके साहित्य प्रेमी।
पर कमी पर जाए यदि,अवार्ड और सम्मानों की ,
तो बना लेना तुम भी,कोई फेसबुकिया ग्रुप क्षेमी।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०९ /०४ /२०२२
चैत,शुक्ल पक्ष,अष्टमी,शनिवार ।
विक्रम संवत २०७९
मोबाइल न. – 8757227201