हिन्दी वर्णमाला पच्चासा
हिन्दी वर्णमाला पच्चासा
दोहा:-
अ आ इ ई सीखिये, स्वर व्यंजन पहचान।
अक्षर भाषा मूल है, शब्द वाक्य फिर जान।।
चौपाई:-
【अ】*अ आ इ ई ऊ ऊ* सीखें। जैसे बोलें वैसे लिक्खें ।।
【आ】आम आदमी शिक्षित होवे। रहे न अनपढ़ और न भटके।।
【इ】इत्मीनान से सोचें समझें। बिन सोचे ही कभी न उलझें ।।
【ई】ईर्ष्या द्वेष स्वयं को घातक। क्रोध बैर है बुद्धि विनाशक।।
【उ】उठो समय से बिस्तर छोड़ो। आलसपन से मुख को मोड़ो।।
【ऊ】ऊल-जलूल न बात बताओ। समय कभी मत व्यर्थ गवाओ।।
【ऋ】ऋण उधार की अति मत करिए। किश्त बिना चूके ही भरिये।।
【ए】एक-एक सीढ़ी चढ़ जाओ। जीवन अपना सफल बनाओ।।
【ऐ】ऐसा-वैसा काम न करिये। गलत काम से हरदम डरिये।।
【ओ】ओजस्वी तेजस्वी बनिये। सुंदर स्वस्थ हमेशा रहिये।।
【औ】और हृदय मानवता रखिये। दर्द दीन का हरदम लखिये।।
【अं】अंतर सही-गलत पहचानों। सबकी सुनो अंत खुद मानो।।
【अ:】अ: हहा कर हँस भी लेना। अब आगे व्यंजन पढ़ लेना।।
⦅क⦆कर्कश कटु वाणी मत बोलो। पहले तौलो तब फिर बोलो।।
⦅ख⦆खबर झूँठ की मत फैलाओ। कभी दीन को नहीं सताओ।।
⦅ग⦆गलत आदतें अपनी छोड़ो। स्वार्थ साधना से मुख मोड़ो।।
⦅घ⦆घमंड में मत पागल होना। होश हवाश कभी मत खोना।।
⦅ङ⦆ङ ञ ण देखो कह पाओ। ड़ ढ़ उच्चारण कर जाओ।।
⦅च⦆चमक रखें चेहरे की उज्जवल। अंतर्मन से हों हम निश्छल।।
⦅छ⦆छ्ल-छद्मों से दूरी रखना। धोखा नहीं किसी से करना।।
⦅ज⦆जल जैसा तन-मन निर्मल हो। मन मुस्काता खिला कमल हो।
⦅झ⦆झगड़ा-झांसा ठीक नहीं है। मिल जुल रहना सदा सही है।।
⦅ञ⦆ञ मध्य शब्द के आता। ण मध्य अंत आ जाता।।
⦅ट⦆टपकाना मत लार लोभ में। नहीं जलाना हृदय क्रोध में।।
⦅ठ⦆ठट्ठा लगा ठहाका मारो। हरदम खुश दिल रहिए यारो।।
⦅ड⦆डट कर मन से मेहनत करिए। आलसपन चोरी से डरिये।।
⦅ढ⦆ढकोसलों से रखना दूरी। सत्कर्मों से इच्छा पूरी।।
⦅ण⦆’ण’ टवर्ग का पंचमाक्षर। मिले शब्द के मध्य अंत पर।।
⦅त⦆तम को त्याग उजाला लाओ। कर संघर्ष श्रेष्ठ बन जाओ।।
⦅थ⦆थर-थर मत कांपो, भय छोड़ो। हिम्मत से खुद रिश्ता जोड़ो।।
⦅द⦆दमन दीन का कभी न करना। मानवता को जीवित रखना।।
⦅ध⦆धन दौलत मत व्यर्थ बहाओ। सदुपयोग धन का कर पाओ।।
⦅न⦆नमन सदा गुरूजन को करिए। अहं क्रोध से दूरी रखिये।।
⦅प⦆पढ़ लिख कर के योग्य बने हम। दूर करें दुश्मनी द्वेष तम।।
⦅फ⦆फल की पहले रखो न चाहत। कर लो मन से पूरी मेहनत।।
⦅ब⦆बक-बक ज्यादा ठीक नहीं है। घुप रहना भी सही नहीं है।।
⦅भ⦆भद्दी भाषा कभी न बोलो। सत्य और प्रिय वाणी खोलो।।
⦅म⦆मन स्थिर तन में गति रक्खें। अच्छा बुरा हमेशा लक्खें।।
⦅य⦆यहाँ-वहाँ मन मत भटकाओ। मन स्थिर अपना कर पाओ।।
⦅र⦆रक्खो मत रिश्वत की चाहत। नहीं किसी का दिल हो आहत।।
⦅ल⦆लड़ो नहीं आपस में भैया। टूटे तन-मन लुटे रुपइया।।
⦅व⦆वजन बात में उचित बात है। बात बदलना बड़ी घात है।।
⦅श⦆शत्रु कभी कमजोर न जानो। गद्दारों को भी पहचानो।।
⦅ष⦆षड़यंत्रों से बच कर रहना। साहस धैर्य सदा हिय रखना।।
⦅स⦆सद्कर्मों को ही अपनाएं। गलत कार्यों को तज पायें।।
⦅ह⦆हम सब हों मानवतावादी। बनें न कोई अवसरवादी।।
〘श्र〙श्रम की सदा महत्ता जाने। तन-मन सुंदर स्वस्थ बनाने।।
〘क्ष〙क्षमा शीलता को अपनाओ। कट्टरता को दूर भगाओ।।
〘त्र〙त्रस्त नहीं करना अपनो को। दबा नहीं रखना सपनों को।।
〘ज्ञ〙ज्ञप्ति ज्ञान को हासिल करना। कौशल नहीं अहं में मरना।।
दोहा:-
अ से लेकर अ: तक, क से ज्ञ तक ज्ञान।
हिन्दी भाषा सीख सच, कौशल बनो महान।।
ॐ हिन्दी अक्षराय नम:
रचनाकार-
कौशलेंद्र सिंह लोधी कौशल