हिन्दी मातृभाषा
आन-बान-शान हो, तुम हिन्दुस्तान की,
धरा ये बस!तुम्हें ही पुकारती।
चंद्र सुशोभित मस्तक तेरा,
कर्ण वर्ण से सजते है।
सरस स्वर औ ! मधुर रागिनी,
मात्र रूप निखारती,
अर्द्ध पूर्ण से नाज़ औ ! तेरे
व्यंज से धड़ संवारती ।
फलक से हलअंत चलें तो,
ज्ञान प्रकाश तुम फैलाती,
शान से विराम लगे,
जब नूपुर भी इठलाती।
नुक्ता सी तेरी बिछीया है,
ज्ञान की ज्योति जलाती हो,
ओड के चूनर माथे पर,
तुम पूर्ण हो जाती हो।
पुलकित होता अंग-अंग,
जब भाव सरस गहराती हो,
औ ! जननी तुम भाषाओं की,
मातृभाषा कहलाती हो।
गुथकर भावों के ताने-बाने में,
तुम आत्मा हिंद की बनती हो। ।।।