हिन्दी भाषा में खिले
“हिन्दी भाषा में खिले”
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* गीतिका *
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हिन्दी भाषा में खिले, जब शब्दों के फूल।
हर्षित मन को सहज ही, भाव मिलें अनुकूल।
मिट्टी से इस देश की, गुंथा है सम्बन्ध,
हिन्दी भाषा का यहाँ, है अति गहरा मूल।
अनुपम ग्रंथों की हुई, इसमें रचना खूब,
जिनको पढ़ने से मिटे, मन पर फैली धूल।
अपनी भाषा से खुलें, सुख के सभी गवाक्ष,
इसे उपेक्षित मत करो, है यह भारी भूल।
अंग्रेजी के मोह को, शीघ्र दीजिये त्याग,
इसके कारण हैं बिछे, पथ में तीखे शूल।
जल्दी कदम बढ़ाइए, अब न कीजिए देर,
बाधाओं में मत रुको , कितनी भी हो स्थूल।
अखिल विश्व में ज्ञान का, हिन्दी करे प्रसार,
इसी हेतु अब कार्य हो, दूर नहीं है कूल।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १४/०९/२०१९