हिन्दी की वेदना
(हिन्दी की वेदना
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(मनहरण घनाक्षरी)
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इतना ही बहुत है मन समझाने को जी,
एक दिन साल में तो मेरा भी मनाते हो ।
करके बखान खूब करते हो गुणगान,
एक तो दिवस माता कह के बुलाते हो ।।
डाल पुष्प हार गले चंदन से भाल सजा,
सेवा करने की तुम कसम तो खाते हो ।
‘ज्योति’ अपने ही घर मेरी जो कुगति हुई,
क्यों न उसे देख तुम तनिक लजाते हो ।।
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:(हिंदी की वेदना)
०००
मुझको तो रहने को दिया एक कौना बस ,
दूसरे की लाड़ली को सिर पे बिठाते हो ।
मुझको नसीब नहीं फटी ओढ़नी भी किंतु,
नये-नये उसे परिधान सिलवाते हो ।।
अपनी जो लाड़ली है उसको तो छाछ नहीं,
दूसरी को दूध के कटोरे पिलवाते हो ।
अपने ही घर में मिला नहीं है मान ‘ज्योति’,
दशा देख हँसते तनिक न लजाते हो ।।
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राधे…राधे…!
🌹
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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