हिदायतें
शादी के कुछ अरसे बाद जब मुझे एक बार आफिस के काम से दूसरे शहर जाना पड़ा,जहां मेरी ससुराल भी थी। दो तीन दिन का प्रोग्राम था, इसलिए मैं अकेले ही गया। मुझे ऑफिस के गेस्ट हाउस मे ठहरना था, तो ये तय हुआ कि एक शाम मैं अपनी ससुराल भी चला जाऊँगा।
इस बीच जाने का दिन नज़दीक आते ही तुम्हारी हिदायतों का सिलसिला शुरू हो गया।
सुनो, पापा ज़रा ऊंचा सुनते हैं, उनसे धीमे से बात मत करना।
चाचा जी के पाँव छूना, पिछली बार तुमने सिर्फ नमस्ते की थी।
दादी से मारवाड़ी मे बात करना उन्हें अच्छा लगेगा।
छोटा भाई जरा शर्मिला है, तुम ही उससे बात करना कि पढ़ाई कैसी चल रही है।
ये शर्ट और पैंट पहन कर जाना,तुम पर बहुत जँचते हैं।
सोफे पर बैठते वक़्त पांव मत हिलाना, जो तुम्हारी बुरी आदत है।
और हां, मेरी सहेली अगर मिलने आ जाये तो ज्यादा बात मत करना , चचेरी बहन की शादी में कैसे खिलखिला कर तुमसे बात कर रही थी।
मैं तुम्हारी हिदायतों को गौर से सुन रहा था और सोच रहा था
कि तुम्हारी अनुपस्थिति मे भी तुम्हारी साख मेरे साथ चल रही है।
उस रात ससुराल से लौटने के बाद जब देर रात तुम्हारा फ़ोन आया और तुमने पूछा कि और बताओ ससुराल गए थे कैसा रहा?
मैं मन ही मन मुस्कुरा उठा , जानता था तुमने सासू माँ और अपने मुखबिरों से पहले ही सारी तहकीकात कर ली हैं।
तुम्हे तो मेरे मुंह से वो सब सुनना था फिर एक बार।