हिज़ाब पर हिसाब
हिज़ाब पर हिसाब
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मुस्कान सदा से ही, घूँघट में छिप गई,
अरमान अब हिजा़ब में ,दफन हो गई।
खुद को, सारे जग में पहचान कराकर ,
मलाला,औरों को कट्टरता क्यूँ सिखला गई।
खुद पर आन पड़ी, तो चीखो चिल्लाओ ,
जान दुश्मन बन जाये तो ,देशबदर हो जाओ ।
आधुनिकता के मुखौटे से पुरस्कार लेकर,
औरों को,शरिया कानून की महिमा बतलाओ ।
भटक गए ख्याल उसके,इस कदर दर-ब-दर ,
बंदिशों को जायज ठहरा रही, हर चौखट पर।
उसकी गुस्ताखियों पर,मत जाओ नादान बच्चियों ,
मुस्कुराओ सदा ही, ज्ञान की रोशनी पर ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १५ /०२/ २०२२
माघ, शुक्ल पक्ष , पूर्णिमा ,बुधवार
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201