#हिचकी#
तुम्हें याद हो न कि न याद हो
मुझे याद सब है जरा-जरा…..
मैं भूलना भी चाहूं तो तेरी
यादों पर है, हिचकियों का पहरा,
तेरी बेवफाई का गम अब कैसा?
वो मेरी आशनाई थी फक़त, अब शिकवा कैसा?
खुद से लाख छुपा लूं चाहे, पर,
मुखबिरी कर ही देती हैं कमबख्त ये हिचकियां,
कभी झूठ ही सही,मन बहलाने को,
पर, ये भरम अच्छा लगता है.