हिकारत जिल्लत
लेखक – डॉ अरुण कुमार शास्त्री
मौलिक – स्वरचित
शीर्षक – अहंकार *
अपचार , अवगणन अनादर अवग्रहण जिल्लात हकारत अवज्ञा अवहेलन मानहानि अपमान बेइज्जती किरकिरी प्रतिष्ठा में कमी
किरकिरी किसी की न कीजिए जनाब ।
हिकारत से देखना किसी को होता है खराब ।
हेठी कहाँ सुहाती है किसी इन्सान को ।
दिल जलता है आँख रोती है तभी तो ।
पद से हर कोई बराबर तो होता नहीं ।
अनादर चाहता कौन जिल्लत सहता नहीं ।
अब ये बात आप भी समझिए तो जनाब ।
हेठी से देखना किसी को होता है खराब ।
अवगुण किसी में देखना काम नहीं आपका ।
भला बुरा किसी को कहना गुण नहीं इन्सान का ।
अजी भगवान से भी थोड़ा डरा कीजिए ।
अवहेलना किसी की सामने-सामने न कीजिए ।
मानता हूँ कि फलां आदमी आपके कद का नहीं ।
नहीं चाहते आप मिलना मानी ये बात भी सही ।
पर उस इन्सान का अपमान तो न कीजिए साहब
अब ये बात आप भी समझिए तो जनाब ।
दुनिया है ये और दुनियादारी भी बहुत अहम होती है ।
हर किसी से मिल जाये शख्सियत ये बड़ी बात होती है ।
चाहत बनूँ सभी की ये चाहत भी सभी में होती है ।
भाग्य को दूसरे के भाई जी न कोसना ये सीखिएगा आप