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14 Feb 2022 · 2 min read

हिंदुत्व भारत की आत्मा है*

हिंदुत्व भारत की आत्मा है
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वास्तव में देखा जाए तो यह हिंदुत्व की समग्रता ही है ,जो हमारे राष्ट्रीय जीवन को संपूर्ण बनाती है । दरअसल हुआ यह कि हिंदुत्व को सांप्रदायिकता की क्षुद्र परिधि में बाँधने का कुत्सित प्रयास किया गया । फलस्वरूप न केवल भारत का इतिहास विकृत हुआ अपितु हमारी प्रेरणा के मूल स्रोत पर ही मानो ग्रहण लग गया । जो कुछ भी हिंदुत्व के अंतर्गत आता है ,उसे संकीर्ण दृष्टि से देखा जाने लगा तथा सांप्रदायिक अथवा एक पक्ष-विशेष से जुड़ा हुआ मानकर तिरस्कृत ,अपमानित और लांछित करने की प्रवृत्ति जोर पकड़ती गई ।आज भी भारत की राजनीति हिंदुत्व की अवधारणा पर प्रश्न-चिन्ह लगाने से नहीं चूक रही।
तुष्टीकरण की राजनीति ने हिंदुत्व के विषयों को विराट परिप्रेक्ष्य में देखने से इंकार कर दिया । जबकि सच्चाई यह है कि भारत का कण-कण हिंदुत्व से प्रेरित है ।
यहाँ की हवाओं में हिंदुत्व का संगीत गूँजता है । जब ऋतुओं का परिवर्तन होता है तो आकाश में आह्लाद होता है ,और हिंदुत्व बनकर बिखर जाता है। जब बसंत आता है ,तब यह उसका पर्व हिंदुत्व है ।जब फागुन का महीना आता है और प्रकृति हर्ष-विभोर होती है ,तब यह प्रसन्नता ही हिंदुत्व है ।
जब हम पर्वतों में ऋषि-मुनियों की साधना का दर्शन करते हैं ,तब यह हिंदुत्व है । जब हम उस इतिहास का स्मरण करते हैं जिसमें राजा भागीरथ ने तपस्या करके गंगा नदी को स्वर्ग से धरती पर अवतरित करने में सफलता प्राप्त की थी तथा भगवान शंकर ने गंगा नदी के वेग को अपनी जटाओं में बाँधा था , तब यह पूरा प्रसंग जो भारत के महान इतिहास को दर्शाता है ,स्वयं में हिंदुत्व ही तो है । हिंदुत्व गंगा नदी के प्रवाह में निहित है। हिंदुत्व उन पेड़ों में निवास करता है ,जिनको पूजनीय मानते हुए इस देश की सनातन संस्कृति में पवित्र दर्जा दिया गया है । केवल मनुष्यों के बीच ही नहीं अपितु पशु-पक्षियों तक से एक आत्मीय रिश्ता जो भारत के सनातन इतिहास में दर्ज है ,उसी का नाम हिंदुत्व है । इसी हिंदुत्व को आधार मानकर तथा इसको सुदृढ़ करने के उद्देश्य से ही हमें विचार करना चाहिए ।
भारत की राजनीति को जातिवादी बनाने में बहुतों को अपना लाभ दिखता है । समाज को विभाजित करने में उन्हें अपनी विजय की अभिलाषा पूरी होती दिखती है । विभाजन से समाज का नुकसान ही होता है । अंततोगत्वा समाज टूटता है और बिखर जाता है। तुष्टीकरणवादी दलों ने अपने वोट-बैंक के प्रलोभन में समाज को बाँटने का कार्य किया और इस देश के नागरिकों के मध्य धर्म के आधार पर दूरियों को बढ़ाया । जातिवाद “फूट डालो और राज करो” की उनकी नीति का ही एक अंग है।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
Tag: लेख
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