हिंदी ग़ज़ल
वो परिंदा, ये परिंदा, सब छला रह जायेगा,
क्या बचा था,क्या बचा है,क्या भला रह जायेगा।१।
एक दिन सारे ईमानों – धरम को भी बेचकर,
आदमी अंदर से केवल खोखला रह जायेगा।२।
आज का कोमल कँवल जो खिल रहा है झील में,
कौन जाने कल को केवल अधखिला रह जायेगा।३।
वक़्त के शायद किसी नाज़ुक गली या मोड़ पर,
हर कोई बस जिंदगी में एकला रह जायेगा।४।
स्मारकें बनकर कोई दिख रही ऊँची महल,
बाद में स्मृति-चिन्ह वो भी धुंधला रह जायेगा।५।
मानवों के हाथ की केवल कमाई कर्म है।
अंत ईश्वर – हाथ सारा फ़ैसला रह जायेगा।६।
©सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’