*हिन्दी हमारी शान है, हिन्दी हमारा मान है*
तू ही मेरी सोच पहुंँच, तू ही अभिव्यक्ति।
तू ही भाव तू ही राग, गाए हर व्यक्ति।
हिन्द की भाषा है तू, मेरी परिभाषा।
बोले तुझे हर जन यही, अभिलाषा।
तू गीतों में तू मीतो में,हर शब्द हर बात में तू।
तू कबीरा की है साखी, खींचे हर जन का ध्यान है।
हिन्दी हमारी शान है, हिन्दी हमारा मान है।।१।।
जायसी का पद्मावत तुझसे, मीरा की मल्हार।
गुप्त का साकेत तुझसे, दिनकर की हुंकार।
सूरदास की सूरसागर, तुझसे देश का विधान।
सरल शब्द भाषा परिभाषा, समझे हर इन्सान।
अदब सिखाए हिन्दी हमको, और शिष्टाचार।
छंद अलंकार साहित्य लोकोक्ति, वर्ण वर्ण की पहचान है।
हिन्दी हमारी शान है, हिन्दी हमारा मान है।।२।।
तुझसे ही बात है, तुझसे ही भाषण।
तू ही मातृभाषा है, तू ही है दिलासा।
तुझसे ही विचार बने, तू ही मेरी भाषा।
कई बोलियों की मालिक तू है, लगती तू बेजोड़ी।
पापा की डांँट है तू, माता की है लोरी।
तू ही मेरी आन वान, तू ही मेरी जान है।
हिन्दी हमारी शान है, हिन्दी हमारा मान है।।३।।
बढ़े क्षेत्र हो विस्तृत, हिन्दी का मान बढ़ाओ तुम।
न्यायालयों में अंग्रेजी क्यों?, इतना तो बताओ तुम।
हिन्दी राष्ट्रीय भाषा क्यों नहीं?, उत्तर देते जाओ तुम।
हिन्द में रहकर हिन्दी से तुम, क्यों इतना शर्माते हो।
अंग्रेजी को शान समझते, हिन्दी से बिन्दी गायब।
दुष्यन्त कुमार लिखता हिन्दी में, हिन्दी गुणों की खान है।
हिन्दी हमारी शान है, हिंदी हमारा मान है।।४।।