हिंदी से बेहतर कोई जबान नहीं
‘हिंदी से बेहतर कोई जबान नहीं’
हिंदी बोली से बेहतर कोई जबान नहीं,
भटके नौजवानों को इसका गुमान नहीं ।
जो बोलते हैं दिल से अपनी विरासत की भाषा ,
सच कहें तो उन जैसी कोई पहचान नहीं ।
मैं इन अदाओं को ख़ामोश कैसे रहने दूं ,
हिंदी लबों पे फिर ,उस जैसी मुस्कान नहीं ।
लिखो जो दिल से तो हर लफ़्ज़ चाँद बन जाए,
वरना क़लम की भी कोई राह आसान नहीं ।
हैं मेरे शब्दों में जज़्बात की ख़ुशबु ‘असीमित’ ,
बोलते है लफ्ज हिंदी में कभी बे-जुबान नहीं ।
~डॉ मुकेश असीमित