हिंदी भाषा माला
हिंदी भाषामाला (हिंदी दिवस पर विशेष)
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अपने अपने मन:भावों को ,जिसमें व्यक्त किया जाता।
उसी उचित माध्यम को देखो ,भाषा सदा कहा जाता।
ध्वनि हो या फिर संकेतो से ,समझा समझाया जाता ।
इन दोनों के मूर्त रूप को ,भाषा प्रायः कहा जाता।
भाषा के दो रूप हमेशा ,सभी ठौर पर मिलते है।
लिखित और मौखिक भाषाऐं, सुधिजन इनको कहते है ।
जन जीवन के बोल चाल में ,मौखिक भाषा होती है।
दीर्घ काल तक जिसे समझले ,लेखन भाषा होती है।
विस्तृत और सँवृत दायरा ,भाषा बोली दिखलाता।
कहीं कहीं पर बोली को ही ,उपभाषा बोला जाता।
बोली का नहीं कोई व्याकरण , शब्दकोश भी नही बना।
श्रुति और वाचन भाषण से ,बोली का कारोबार चला।
बोली ज्यूँ ज्यूँ विकसित होती ,भाषा बनती जाती है।
लिखित श्रवण संविधान लिए,पूर्ण भाषा कहलाती है।
इसी तरह मिल कई बोलियां ,हिंदी भाषा बन पाई।
मुख्यतः जिसमे निम्न तरह की ,बोली भाषा मिल पाई।
पूरब और पश्चिम की हिंदी, शामिल हुई बिहारी भी।
राजस्थानी अवधी मगधी ,मण्डियाली पहाड़ी भी।
इन भाषा बोली को एक किया ,संविधान सभा ने मिलकर के।
चौदह सितम्बर का दिन था जो, सन उन्चास के अवसर पे।
इस प्रकार हिंदी भाषा का ,राजभाषा में जन्म हुआ।
जिसका मिलजुलकर के ,एक नवीन विधान हुआ।
इसको लिखने में जिस लिपि को,सबने अपना मान लिया।
देवनागरी नाम से उस को , सबने ही सम्मान दिया।
वर्ण, शब्द और वाक्य विचारे, व्याकरण एक बना डाला।
जिसमे कुछ को स्वर बोला ,और कुछ को व्यंजन कह डाला।
स्वर भी बाँटे लघु गुरु में , अनुनासिक अनुस्वार हुए।
व्यंजन पंच वर्ग में बाँटे ,संयुक्त व्यंजन विचार भये।
मेल किया स्वर का व्यंजन से ,शब्द नए फिर गढ़ डाले।
तत्सम ,तद्भव देशज ,संकर ,और विदेशी कर डाले।
यौगिक ,रूढ़ और योगरूढ़ भी ,शब्दों का रूप बताया है।
विकारी और अविकारी भी , प्रायोगिक बेस बनाया है।
और अर्थ के आधारित भी ,नामकरण किया हमने।
एकार्थी ,विलोम ,पर्याय,युग्मआदि ,वर्गीकरण किया हमने।
आगे चलकर इन शब्दों से ,वाक्य खूब बनाये है।
इसके लिये शब्दो के हमने ,थोड़े खण्ड दिखाए है।
कुछ शब्दों के तनिक उद्दरण, तुमको यहां दिखाता हूँ।
विकारी और अविकारी के ,थोड़े भेद बताता हूँ।
इस प्रकार हिंदी भाषा को ,हमने अपनाया दिल से।
बोलो सदा ही प्रयोग करेंगे ,मान दिलाएंगे दिल से।
शेष अगले अंक में……..
कलम घिसाई
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