हिंदी भाषा और भारतीय फिल्म जगत उर्फ़ बॉलीवुड
हिंदी के बिना फिल्म जगत अधूरा है ,
सच मानो तो हिंदी के बिना इसका ,
परिचय भी अधूरा है ।
पटकथा हो या संवाद अदायेगी ,
अत्यंत भावपूर्ण और रोचकता यही से आई ।
संगीत के सात स्वर में ढले गीत ,गजल ,
भजन और कव्वाली आदि में जान कहां से आई !
निस्संदेह हिंदी का ही है योगदान सारा।
देश की मिट्टी को जिसने पहचाना ,
उसकी संस्कृति और सभ्यता को माना।
इस देश की आत्मा के स्वर को जाना ,
तत्पश्चात हिंदी फिल्म जगत का बनी बाना ।
इनकी लोकप्रियता का बंधा हिंदी के माथे पर सहरा।
भारत वर्ष के गंगा जमुनी तहजीब में ,
हिंदी जबसे उर्दू की सहेली बनी ।
फिल्म जगत में भी यह कौमी एकता ,
भारत वर्ष का प्रमुख और महान संदेश बनी ।
हिंदी के साथ यह उद्देश्य हुआ पूरा।
कितने ही महान गीतकार ,लेखकों ,
गजलकारों ने अपनी लेखनी से इसे संवारा।
उनका उच्च चरित्र , देशप्रेम भी ,
इनकी लेखनी को और उभारा ।
इनके अद्वितीय लेखन कला कौशल से निकली ,
हिंदी की पवित्र अमृत धारा ।
इन गीतों और गजलों में जान फूंकी ,
देश के महान दिग्गज गायकों के समधूर स्वरों ने ।इंसानी जज्बातों के इंद्रधनुषी रंग में ,
शहद सी मिठास घोल दी माता शारदे की अमर संतानों ने ।
सात सुरों की गंगा में डूब गई समस्त वसुंधरा।
मगर अब यह देखकर होता है बड़ा दुख ,
फिल्म जगत ने जबसे किया पश्चिमीकरण का रुख ।
हिंदी फिल्म जगत बॉलीवुड बन गया ,
रोमनलिपि अपनाकर देवनागरी से फेर लिया मुख ।
अंतरात्मा के आईने में जो रूप झलकता था भारतीयता का वो अब धूल से है भरा ।
हिंदी की आभा से जो चमकता था ,
यह फिल्म जगत कोहिनूर बनकर ।
उस चमक को वापस लाना होगा ,
रोमन की जगह देवनागरी को प्रचलन में लाकर ।
हिंदी की पहचान है देवनागरी ,
हिंदी की आत्मा है देवनागरी ,
इसके बिना हिंदी हिंदी नही,है केवल खाना पूर्ति ,
उचित है यही देवनागरी सहित हिंदी ,
प्रयोग में लाई जाए ।
यह सच्चाई जान ले बॉलीवुड उर्फ़ फिल्म जगत सारा।