हिंदी पर कुण्डलिया छंद
हिंदी पर कुण्डलिया छंद
1.
हिंदी जीवन की सुधा ,हिंदी मन अस्तित्व।
हिंदी से ही सज रहा ,जन -जन का व्यक्तित्व।।
जन-जन का व्यक्तित्व ,बिना हिंदी सब सूने ।
बनी एकता सूत्र ,चली अंबर को छूने।
हिंदी सरल सुशील ,सहज अविरल कालिंदी।
भाषा भव्य विधान , हिन्द की प्यारी हिंदी।।
2
केवल भाषा ही नहीं ,हिंदी हिंदुस्तान
प्राण आत्म इसमें बसे ,हिंदी मन सम्मान।।
हिंदी मन सम्मान ,दिव्य देवों की भाषा।
निज उन्नति का मूल ,कोटि जन मन अभिलाषा।
बहती अविरल नित्य ,बहे ज्यों नित गंगाजल।
हिंदी माँ का रूप,नहीं भाषा ये केवल।।
3
गौरव पथ हिंदी चली ,भाषा सलिल सरोज।
मधुरिम मोहक मोहनी ,अविचल अविरल ओज।।.
अविचल अविरल ओज ,पूर्ण व्याकरणी हिंदी।
साहित्यिक सिरमौर ,जगत माथे की बिंदी।
लिए सनातन सत्य ,दौड़ता हिंदी का रथ।
बनी राष्ट्र सम्मान ,चली हिंदी गौरव पथ।।
सुशील शर्मा