” हिंदी को रुचिकर कैसे बनायें “
हम सबके लिए विषय नया नही है हम सबने बचपन से घुट्टी के साथ हिंदी को भी पीया है लेकिन घुट्टी को तो स्वीकार लिया परंतु अपनी मातृभाषा हिंदी को ही अस्वीकार दिया , दिन रात यही भाषा बोलते हैं इसी भाषा की खाते हैं फिर भी इसको अपनाते नही हैं , हमारी मातृभाषा अपनों में ही पराई है ज्यादातर बच्चे किसी तरह दसवीं तक रो धो कर पढ़ लेते हैं उसके बाद हाथ जोड़ लेते हैं घर में आये मेहमानों को भले ही ना हाथ जोड़ें ” हाय – हैलो ” बोलें । कहते हैं हमें आगे हिंदी का कोई काम नही है इनको समझाना होगा की अपनी मातृभाषा काम के लिए नही पढ़ी जाती इसको जानों समझो… इस खूबसूरत भाषा के महत्त्व को इसकी खूबियों को हमें ही समझाना होगा , आसान सी भाषा है जो लिखा है वो पढ़ना है साइलेंट का इस भाषा में कोई काम नही है इसमें हम स्वर और व्यंजन भी पढ़ते हैं ।अलंकार को ही ले लिजिये एक शब्द के मतलब उसके प्रयोग के हिसाब से बदल जाते हैं इसके उदाहरण हमको अलंकार में मिलते हैं जैसे यमक अलंकार में एक ही शब्द बार – बार आता है परंतु उसके अर्थ अलग – अलग होते हैं…
उदाहरण : कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
या खाए बौरात नर या पाए बौराय। ।
इस पद में ‘ कनक ‘ शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है पहले ‘ कनक ‘ का अर्थ ‘ सोना ‘ तथा दूसरे ‘ कनक ‘ का अर्थ ‘ धतूरा ‘ है । इसी तरह रस के प्रकार भी हैं नौ रस सिर्फ पंक्तियाँ बोलिये उसका रस अपने आप ही आपके समक्ष टपक पड़ेगा उदाहरण स्वरूप ‘ अद्भुत रस ‘ इसका स्थाई भाव ‘ आश्चर्य ‘ होता है…
उदाहरण : एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहां अपर है ?
उसने कहा अपर कैसा वह उड़ गया सपर है ,
उत्तेजित हो उसने पूछा उड़ा अरे ! वो कैसे ?
फड़ उड़ा दूसरा बोली उड़ा देखिए ऐसे ।
ऐसी लाजवाब भाषा से कैसे कोई परहेज कर सकता है ये पढ़ कर तो इस भाषा से प्यार हो जाये और भी असंख्यों उदाहरण हैं क्या – क्या बताऊँ । आजकल हिंदी पुस्तक मेले अपने ग्राहकों का इंतज़ार करते हैं नाम मात्र के पाठक रह गये हैं ।
हिंदी में दिलचस्पी लाने के लिए इसके पढ़ाने का तरीका भी दिलचस्प बनाना होगा….मैं आपको बताती हूँ अंग्रेजी माध्यम स्कूल के मेरे बेटे की हिंदी पुस्तक में ऐसे अध्याय हैं जो पढ़ने में बहुत ऊबाऊ और क्लिष्ट हैं मुझे पढ़ने में दिक्कत हो रही थी उसको वो बच्चे कैसे पढ़ेगें जो उच्चारण तक नही ठीक से नही कर पा रहे हैं । मेरे हिसाब से हिंदी के पाठ में ऐसी कहानी , कविता , दोहे और लेख हों जो बच्चे में उसको पढ़ने के बाद हिंदी के प्रति रूचि उत्पन्न करें ना की अरुचि , थोड़े आसान हों जिससे उनको और पढ़ने में दिलचस्पी हो अगर दिलचस्पी जागृत हुई तो वो कठिन हिंदी भी पढ़ना चाहेंगें लेकिन हम तो पहले ही उनको डरा देतें हैं उदाहरण के लिए जैसे छोटे बच्चों को अन्नप्राशन के बाद धीरे – धीरे हल्का , मुलायम और सुपाच्य खाना दिया जाता है जिससे वो खाना , चबाना , निगलना और पचाना सीखता है अगर हम ऐसा नही करेंगें तो बच्चा हर बार वमन करेगा और हम बच्चे को लेकर डाक्टर के यहाँ दौड़ेगें की ” डाक्टर साहब देखिये इसको खाने से विरक्ती हो गई है । ठीक ऐसा ही हाल हमने हिंदी का भी कर रखा है । अभी भी देर नही हुई है नही तो ईस्ट ईंडिया कंपनी की तरह अंग्रेजी भी अपना संपूर्ण आधिपत्य जमा लेगी और हमें अपनी ही भाषा की आजादी के लिए लड़ना होगा , धन्यवाद ।
स्वरचित , मौलिक एवं स्वरचित
( ममता सिंह देवा , 13/09/2020 )