हिंदी के मन की बात
✍️ हिंदी दिवस पर___
मैं #हिंदी, आज नगर भ्रमण पर निकली हूं। मीडिया की वजह से मुझे भी पता चला कि आज मेरा दिन है। अच्छा लगा, मेरे लिए इतना उत्साह…….. सही भी है होना भी चाहिए, आप अपनी #मातृभाषा में जितना अच्छा सोच सकते हैं, उतना दूसरी भाषा में नहीं। कई बार तो अर्थ का अनर्थ भी ही जाता है, #भाव ही बदल जाते हैं। पूरा दिन घूमने के बाद अब थक हार कर लौटी हूं। वैसे तो मैं राष्ट्रभाषा राजभाषा के साथ ही संपर्क भाषा भी हूं, और कई देशों में बोली जाती हूं। मेरी कई बहनें भाषा भी हैं, जैसे_ प्राकृत, खड़ी बोली, अपभ्रंश, ब्रज, अवधी, उर्दू, डोगरी, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, गुरुमुखी और भी बहुत होंगी शायद, पर माताश्री तो एक ही हैं, #संस्कृत।
समस्त भाषाओं में भाषा हिन्दी।
हो जैसे सुहागन के भाल पर, बिंदी।।
सच कहूं तो बड़ा असमंजस में हूं, अपने अस्तित्व को बचाने, मजबूत करने के लिए अभी बहुत प्रयास करना पड़ेगा। ये सब दोहरे मापदंड, मानसिकता वाले लोग हैं, जिनके अपने कोई वैचारिक प्रतिबद्धता, सिद्धांत नहीं हैं।
आदमी जिसे अच्छा लगता है,अंग्रेजी में बच्चों को गिटपिट करते सुनना,
लेकिन मंच पर, या अपने लेखों में हिंदी के प्रयोग, उत्थान पर भाषण देना।
जिसे अच्छा लगता है, विदेश, वहां की संस्कृति के गुणगान करना।
लेकिन अपने देश को पिछड़ा कह कोसना, हेय दृष्टि से देखना।
वहां की संस्कृति कहें या भोगवृत्ति, आजादी, को देख दीवाना होना,
लेकिन अपनी संस्कृति की बातें केवल लेखन, फोटो प्रतियोगिता जीतने तक।
घर के जोगी जोगना, आन गांव के संत।
सही बात है। कई बार विदेशियों को हिंदी में बात करते सुनती हूं तो ऐसा ही लगता है, अपने देश भले कोई ना पूछे बाहर वाले तो कद्र कर रहे हैं। फादर कामिल बुल्के का यह कथन सही प्रतीत होता है_
संस्कृत भाषा है मां!
हिंदी महारानी
और अंग्रेजी नौकरानी।
?डॉ. फादर कामिल बुल्के?
चलो अब अगले वर्ष फिर मिलती हूं, तब शायद मैं थोड़ी और #बुजुर्ग ? हो जाऊंगी। कहते हैं, बुजुर्गों के पास अनुभवों का खजाना होता है, कभी फुरसत में मिलिएगा…