हिंदी का विकास एवं प्रसार स्व सामर्थ से हुआ है।
भारत बहु भाषा एवं वोलियों का देश है, इसका मुझे बहुत गर्व भी है, क्योंकि हिंदी ने संपर्क भाषा के रूप में हर बोली एवं भाषा बोलने वाले को एकजुट कर राष्ट्रीय पहचान दिलाई है। हिंदी कई आंचलिक बोलियों और भाषा के रूप में देश में प्राचीन समय से बोली जाती रही है, और इसका क्षेत्रफल बृहद रहा है। इसलिए भक्ति कालीन कवि एवं लेखकों ने कई ग्रंथ दिए जो भारत सहित दुनिया के कई देशों में सर्वग्राही हुए जिसमें रामचरितमानस सूरदास कबीरदास मीरा प्रमुख हैं। इनके स्व सौंदर्य कथा लालित्य से हिंदी को बहुत बल एवं प्रसार मिला। पूरब से पश्चिम उत्तर से दक्षिण तक रामलीला रासलीला मंडलियों का बहुत सराहनीय योगदान रहा है। आजादी के पहले पूरे देश में आजादी की अलख जगाने में हिंदी ने अहम योगदान किया। अपने समर्थ विचारों से तत्कालीन साहित्यकारों ने अपने साहित्य के दम पर राष्ट्रीय एकता में प्रमुख भूमिका निभाई, एक संपर्क भाषा के रूप में पूरे देश को एक कर दिया, जिसकी परिणति आजादी थी। आजादी के बाद नेताओं की संकीर्ण भावनाओं ने हिंदी के राष्ट्रभाषा बनाए जाने पर आंचलिक विवाद पैदा किए जो उनकी क्षुद्र मानसिकता को दर्शाता है, लेकिन हिंदी अपने सामर्थ्य से बढ़ती ही चली गई। आज खुशी की बात है हिंदी पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण सभी जगह बोली और समझी जाती है, अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी दुनिया के कई देशों में हिंदी ने अपनी पैठ बना ली है। इसका श्रेय भी हिंदी की सर्वग्राहिता अंतस सौंदर्य एवं लालित्य को ही जाता है। इसका श्रेय सरकारों को देना अनुचित होगा क्योंकि आजादी के बाद सारे सरकारी प्रयास सफेद हाथी ही साबित हुए हैं। सरकार ने विभाग बनाए अकादमियां बनाई लेकिन बे अपने ही दायरे में भाई भतीजावाद एवं भ्रष्ट आचरण की शिकार रहीं, उन पर आज भी कृपा पात्र लोगों का कब्जा रहता है उनके प्रयास नगण्य रहे। अतः यह कहना उपयुक्त होगा कि हिंदी स्व सामर्थ से आगे बढ़ी है, और बढ़ रही है, हां इसमें सिनेमा हिंदी कथा साहित्य दूरदर्शन समाचार हिंदी के समाचार पत्र पत्रिकाएं धार्मिक साहित्य एवं दूरदर्शन के धार्मिक हिंदी सीरियल का विशेष योगदान रहा है, साथ ही साथ धार्मिक तीर्थ यात्राएं पर्यटन से हिंदी के प्रसार को बहुत बल मिला है। इसलिए मुझे कहने में कोई संकोच नहीं है कि हिंदी बिना किसी भाषा या बोली का नुकसान किए, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पटल पर आगे बढ़ती रहेगी, सरकारी प्रयास सिर्फ हिंदी दिवस मना कर हिंदी को आगे बढ़ाने की बात करते रहेंगे।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी