हिंदी का वर्तमान स्वरूप एवं विकास की संभावना
हिंदी जिसे देश की अग्रणी भाषा का स्थान मिलना चाहिए अभी तक उस स्थान से वंचित रही है।
अभी तक हम उसे राष्ट्रभाषा का गरिमामय स्थान दिलाने में असमर्थ रहे है।
जिसका प्रमुख कारण देश में व्याप्त क्षेत्रीयता की राजनीति है। जिसमे हम क्षेत्रीय तुष्टीकरण की वोट बैंक राजनीति के चलते क्षेत्रीय भाषाओं के विकास को वरीयता देते हैं और क्षेत्रीय स्तर पर हिंदी के प्रसार एवं विकास की अवहेलना करते हैं।
सरकारी विभागों में भी द्विभाषी फार्मूले के तहद कामकाज में अंग्रेजी एवं क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग सुनिश्चित किया जाता है ।
भाषा के विषय में राजनीति के दोहरे मापदंड हिंदी के प्रसार एवं विकास में बाधक है।
हिंदी विकास के नाम पर हिंदी दिवस एवं विभिन्न मंचों पर वार्ता एवं चर्चाओं का आयोजन कर इतिश्री कर लेते हैं। इस प्रकार के आयोजन भी हिंदी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित रहते हैं ,अहिंदी भाषी क्षेत्रों में इस प्रकार के आयोजन देखने में नहीं आते है।
यह दुर्भाग्य का विषय है कि हिंदी के विकास के लिए देश के शासन की प्रतिबद्धता अभी तक स्पष्ट
नहीं है। हमारे देश की त्रासदी यह है कि राजनैतिक इच्छाशक्ति के बगैर हमारे देश में कोई भी विकास संभव नहीं है। राजनीति जब क्षेत्रीय वोट बैंक नीति से प्रेरित हो तब क्षेत्रीय स्तर पर हिंदी के प्रसार एवं विकास को विरोध का सामना करना पड़ेगा जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव वोट बैंक पर पड़ेगा और यह जोखिम केंद्र सरकार उठाने से कतराती है।
हिंदी विकास के नाम पर विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में गिने-चुने प्रबुद्ध साहित्यकारों एवं गणमान्य व्यक्तियों को निमंत्रित कर वार्ता का आयोजन करना एवं मानद उपाधियां वितरित करना भर रह गया है।
हिंदी भाषा में विश्वविद्यालय स्तर पर अनुसंधान की कमी है। इसके अतिरिक्त शासन द्वारा हिंदी अनुसंधान केंद्र एवं संस्थान स्थापित कर प्रतिबद्धता पूर्ण हिन्दी विकास में योगदान कमी भी दृष्टिगत होती है ।
अतः वर्तमान परिस्थिति में हिंदी का प्रसार एवं विकास एक प्रश्नवाचक चिन्ह बनकर रह गया है।
अतः हिंदी के विकास हेतु गहन चिंतन की आवश्यकता है।
प्रथम , हमें उन सभी कारकों का अध्ययन करना पड़ेगा जो हिंदी के समग्र विकास में बाधक है,और उन्हें दूर करने के विकल्प खोजने होंगें।
द्वितीय, हिंदी विकास, प्रचार एवं प्रसार हेतु क्षेत्रीयता की राजनीती से हटकर शासन द्वारा एक सर्वमान्य नीती लागू करना होगी और इसका कड़ाई से पालन करना होगा।
तृतीय, हिंदी के विकास प्रचार एवं प्रसार हेतु गैर सरकारी संस्थानों एवं प्रतिष्ठानों को प्रोत्साहित कर उनकी भागीदारी भी सुनिश्चित करना होगी।
चतुर्थ, हमें जनसाधारण में हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में अधिक से अधिक स्थापित करने के प्रयास करने होंगे।
पंचम, हमें जनता में हिंदी उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर हिंदी कार्यशाला, वार्ताओं, चर्चाओं, हिंदी लेखन प्रतियोगिताएं, एवं सम्मेलनों का आयोजन करना पड़ेगा।
षष्ठम , विद्यालय एवं महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तर पर पाठ्यक्रम में हिंदी को एक अनिवार्य भाषा के रूप में स्थापित करना पड़ेगा ,
जिससे कोई भी विद्यार्थी हिंदी के ज्ञान से अछूता न रह सके।
सप्तम, विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तर पर हिंदी प्रचार एवं प्रसार के लिए विभिन्न प्रतियोगिताएं , जैसे: लेखन प्रतियोगिता , वाद विवाद प्रतियोगिता , भाषण प्रतियोगिता , उभरती प्रतिभाओं का काव्य सम्मेलन इत्यादि आयोजित कर विद्यार्थियों में हिंदी के प्रति रुचि का निर्माण एवं उपयोग को प्रोत्साहित करना पड़ेगा।
शासन द्वारा हिंदी भाषा में प्रशिक्षण एवं अनुसंधान के लिए विशेष संस्थान स्थापित करने होगे , इसके अतिरिक्त महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तर पर भी हिंदी भाषा प्रशिक्षण एवं अनुसंधान विभाग स्थापित करने होंगे। जिसमें हिंदी भाषा के संवर्धन हेतु सतत् प्रयत्नशील रहकर हिंदी को समृद्ध बनाना होगा।
अष्टम , सरकारी नौकरी में नियुक्ति के लिए हिंदी को अनिवार्य घोषित करना पड़ेगा। सरकारी विभागों में पत्राचार एवं संपर्क हेतु हिंदी को वरीयता प्रदान करना होगा।
नवम, क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध उच्च कोटि के साहित्य एवं ग्रंथों को जन जन तक पहुंचाने हेतु उनके हिंदी में रूपांतरण की व्यवस्था एक बड़े पैमाने पर करनी होगी एवं अनुवाद को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त मानदेय राशि निर्धारित करनी होगी।
दशम , ललित कला के क्षेत्र में हिंदी के नाटकों एवं गीतों का मंचन एवं इससे जुड़े हुए कलाकारों को प्रोत्साहन देना आवश्यक है , जिससे जनसाधारण में हिंदी के प्रति रुचि एवं जागरूकता पैदा की जा सके। इसके अतिरिक्त संचार माध्यमों टीवी एवं फिल्मों की हिंदी प्रचार एवं प्रसार में एक अहम भूमिका प्रस्तुत की जा सकती है।
हिंदी का भविष्य राजनीतिक इच्छा शक्ति ,शासन तंत्र की निष्पादन में प्रतिबद्धता , एवं विभिन्न क्षेत्रों में जनसाधारण के योगदान पर निर्भर करेगा।
हिंदी के विकास के लिए गंभीर मंथन की आवश्यकता है। हिंदी समृद्धि के पथ पर सतत् अग्रसर रहे, यह मेरी हार्दिक कामना है।