“ऋतुराज बसंत”
“ऋतुराज बसंत”
मंद मंद मुस्कान लिए
चारों ओर हरियाली छाई
प्रकृति का श्रृंगार करने
देखो बसंती बयार आई।
लाल गुलाब संग पीली सरसों लहराई,
कुसुम कली खिल-खिल वन उपवन सजाई।
पसरी धवल धूप आंगन में ,
बिखरी फूलों की महक पवन में।
सिहरी सिहरी निशा ढली है
खोल घूँघट कलियाँ भी खिली है।
फैली छटा प्रकृति की चहुँओर
कोयल बोले डारी पे,देख बसंती भोर।
पलाश पवन संग डोल रहा है ,
मीठा सा रस घोल रहा है ।
नाचे गाए सब मन बहलायें,
चलो मिलकर गीत मल्हार गाए।
खिल खिल कर कलियां झूम रही है,
स्वागत तितलियों का कर रही है ।
मधुकर सुमन पर डोल रहा है,
मीठी-मीठी बतियाँ बोल रहा है।
खिल गई पीली सरसों धरा पर,
गेहूं की बालियाँ भी लहराई।
पपीहे की मधुर मधुर बोली,
कानों में जैसे मिश्री घोली ।
वसुंधरा ने पीली धानी चुनर सजायी
आम के बोरे की खुश्बू हवा में छाई ।
गदराई सरसों ,फूल उठे कचनार ,
मदमस्त मौसम लेकर आया बसंत बहार।
नवकुसुम खिल रहे हैं,
दिलों से दिल मिल रहे हैं ।
मस्त हवाओं के झोंकों से ,
मीठा सा रस घोल रहे हैं ।
प्रकृति का प्रेमी बसंत आया ,
सजी दुल्हन सी धरती,मन भाया।
पल में पतझड़ का हुआ अंत,
देखो आया ऋतुराज बसंत।।
-रंजना वर्मा
गिरिडीह (झारखंड)