हाहाकार
भीष्म से तो हम नहीं, पाया विदुर उपाय
जब भारी उपकार हो, सभा छोड़ के जाय ||
सर झुकाय बैठे रहे , आज उन्हें धिक्कार
भरी सभी में द्रौपदी, करती रही गुहार ||
भूलें महाभारत की , बनी शूल आधार
चरित्र हीन पुरुष हुए , फैलाया व्यभिचार ||
धन लोलुप ये जग हुआ, भूल गया सब ज्ञान
संत साधना ढोंग से, धर्म हुआ बदनाम ||
जल रहा ये समाज है , दिखे तिमिर साम्राज
प्रबल धन आसक्ति भई , ज्ञानी है धनराज ||
थोथा बेटी दिवस है , सुत निरंकुश तुहार
गिद्ध दृष्टि बेटी पड़े, होती हाहाकार ||