हास्य – व्यंग्य
बेलन से भयभीत करो वनिता वनिता प्रभु जाप सदा ही।
जाप करे उर क्षोभ घटे तन का मिटता सब ताप सदा ही।
भोग – विलास से दूर रहें मन से मिटता हर पाप सदा ही।
नित्य नवा कर शीश मिले उर हर्ष छँटे परिताप सदा ही।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’
बेलन से भयभीत करो वनिता वनिता प्रभु जाप सदा ही।
जाप करे उर क्षोभ घटे तन का मिटता सब ताप सदा ही।
भोग – विलास से दूर रहें मन से मिटता हर पाप सदा ही।
नित्य नवा कर शीश मिले उर हर्ष छँटे परिताप सदा ही।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’