हास्य व्यंग्य पर भी व्यंग्य
दुनिया में जटिलताओं को लेकर जवाब
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परिवर्तन प्रकृति का स्वभाव है,
भक्तों के दिन हैं
नामुराद व्यर्थ ही क्यों परेशान हैं,
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आपको मच्छरों की पड़ी,
एक कौम आरंभ से नंगी है,
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कण-कण में ईश है,
यह सत्य है,
मगर उसे “गधा” कहा गया तो वह दुखी है,
उसे मालूम न था,
उसमें भी हर कण के अंश है,
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उसे खोजना था अपने ब्रह्मांड को,
वह व्यर्थ ही ब्रह्म के तत्व से परेशान है,
कभी सूरज को तरसे,
कभी चंद्रमा को,
कभी किसी के मुकुट पर लगा संतुष्ट है,
बिन उपयोगिता खोजें,
प्रतिफल कहाँ है,
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कहें तो लड़ने को तैयार है,
इसमें छुपा कौन-सा ज्ञान है,
दूसरे से जीत कब है ?
या तो लड़े विवेक से,
या झुके प्यार से,
ह्रदय परिवर्तन में ही जीत है,
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विशेष:-
किसी कौम और धर्म को आहत की प्रवृति से नहीं लिखा गया,हास्य-व्यंग्य अहं को तोड़कर सत्य-दर्शन कराते है,शायद आपका भी हो,??