हास्य वेदना के भाव
हास्य, वेदना के भावों को, जो गीतों में बोता है।
उसके ही गीतों को केवल,सुनता बहुधा श्रोता है।।
महज चुटकुले बाजी को तो,
कविता कहना ठीक नहीं।
धरा शिरोमणि के हम वंशज,
उनकी तो यह लीक नहीं।
जो समझ नहीं इसको पाता,दामन बैठ भिगोता है।।
उसके ही गीतों को केवल—-
हर एक दृश्य घटना जिसके,
आँखों में आँसू लाती।
कालजयी रचना को जग में,
वह मेधा ही रच पाती।
पर पीड़ा को जो गीतों में,हर पल रहा पिरोता है।।
उसके ही गीतों को केवल—–
वैसे तो इस चंदन वन में,
नागों का डेरा रहता।
सघन कालिमा में छुप जाऊँ,
कहाँ सबेरा है कहता।
आता है रवि नित पूरब से,पश्चिम खाए गोता है।।
उसके ही गीतों को केवल—-
अपनी शीर्ष विरासत को इस,
अब हमें बचाना होगा।
सदा कलेवर काव्य गीत का,
बस सुदृढ़ बनाना होगा।
नाम गीत का लेकर क्यों तू,कूड़ा कर्कट ढोता है।।
उसके ही गीतों को केवल—–
डाॅ बिपिन पाण्डेय