हास्य रचना
जब से लाया हूँ मैं लुगाई को
मैं तरसता हूँ पाई पाई को
पूछती चाय भी नहीं वो मुझे
खुद तो खाये वो रसमलाई को
गल गया है शरीर चिन्ता में
देख कर उसकी धन लुटाई को
एक दिन झाडू और बेलन से
भूला अब तक नहीं पिटाई को
डरते डरते अगर मैं कह दूँ कुछ
झट बुला लेती बाप भाई को
रोज़ रोटी मँगाए होटल से
ख़ुद न जाए कभी सिंकाई को
ये न होती तो कसम से “प्रीतम”
रखता मैं काम वाली बाई को
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)