हास्य रचना
छंद
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मैने कहा पत्नी से अजी सुनती हो जी,
एक स्त्री को लेने बाजार मुझे जाना है।
झाडू और बेलन लिऐ निकली वो घर से
कहने लगी लौट तुम्हे घर नहीं आना है।।
खूब किया हाथ साफ़ अपना बदन मेरा,
गुस्से में बोली यहाँ तेरा न ठिकाना है।
मैने कहा भागवान इतना बता दे मुझे
कौन सी ख़ता का दिया ऐसा नज़राना है
कहने लगी पति देव इतना तो जान लो,
मेरे रहते दूसरी वो स्त्री न लाना है
मुझमें कमी है क्या ये पहले बताओ
मेरी सुघराई का तो कलुआ दिवान है
मैने कहा करम जली मुझपे यकीन रख
तेरे सिवा और किससे नज़र को लडाना है।
भाग फूटे निर्बुद्धी सौतन न तेरी वो
स्त्री ये वो है जिससे कपड़े बनाना है।।
माफ़ करो चूक मेरी प्यारे सजनवा
भूल के भी हाथ नहीं तुमपे उठाना है
दूर करो सारे शिकवे गिले मेरे “प्रीतम”,
चार दिन की जिन्दगी ये हँस के बिताना है।।
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)