हास्य कविता
खुशी को नहीं ग़म –को लाया हुआ है
रचा कर वो शादी— जो आया हुया है
क़यामत की सूरत—- में आई है बीवी
ज़ुबाँ पर भी ताला— लगाया हुआ है
हुई जब से शादी ——-नहीं चैन पाया
जो बीवी ने—– झाडू थमाया हुआ है
लगा कर लिपिस्टिक वो लगती है ऐसे
लहू जैसे मुँह पर लगाया हुआ है
सबेरे ही कहती है भर लाओ पानी
नहीं कोई घर में नहाया हुआ है
गुमां होता हमको वो लेटी अगर हो
कोई जैसे भैंसा सुलाया हुआ है
मेरी जान आफ़त में चौबीस घंटे
लगे जैसे फांसी चढ़ाया हुया है
जो शादी को लड्डू समझते रहे हैं
है ये ज़ह्र सबने —जो खाया हुआ है
यही हमनें जाना है जीवन में “प्रीतम”
सुखी जो न शादी रचाया हुआ है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)