हास्य-कविता:- हास्य भी ..सीख भी
हे प्रभु !
उन्हें बहुत सारे पटाखे दे देना,
जिन्होंने हमसे पटाखे छीने है ,
उनको लकड़भगा सी चाल देना,
जब चले-चाल हर जोड़
पटाखे-सम आवाज करे,
उनकी कब्ज तोड़ देना जो कब्ज़ से परेशान हैं
उनके दस्त रोक देना, जो हगते हगते हो गए परेशान है,
उन बिछुड़ो को मिला देना
जो शादीशुदा होकर भी दो बिछुड़े यार है,
रंडवो को मिले मौका,कुटुम्ब संभालने का !
व्यर्थ ही हो रहे राजनीति में परेशान है,
धनतेरस के पर्व पर उनको मिले सोना
जिंहोने कुंभकरण की नींद तोड़ गहरी निंंद सुलाया है,
यह पर्व कुछ ऐसा …रहे स्पेशल !
सब मानव मिल बाँट के खाएं-पिए ,
झूम-झूम कर उत्सव मनाऐं ,
सभी दानवी-ताकतो का हो संहार,
मिल-बैठकर सतयुगी करे आगाज,
सीता रुप चेतना का भर देना भंडार,
गीता रुप चेतन का हो उद्-घोष ताकि..
तड़फते तन-मन में पवित्रता की हो शुरुआत,
भूल गए हम,
तोड़ दिए थे हमने,
खत्म किए थे,
सब धनुष और बाण,
असुरी ताकत मिटाने में,
ऐसे काव्य को महेंद्र कभी रुकने न देना,
जो रावण के पुष्पक-विमान तोड़
मानवता का करे आगाज,
डॉ महेंद्र सिंह खालेटिया,
सभी को धन-तेरस और
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं,
अंतर-ज्योति जगे ,
हर तन में हो उजियाला,
जीव जीवन में प्रेम बढ़े,
साभार अभिनंदन ??