हास्य और व्यंग्य आखिर कबतक नासमझी का ढोंग करोगे ?
बहकावण की भी हद होवै सै,
जिद्दी ऐसे कि मानते कोनी.
इब थम ही देख लो ?
लोग नाम के सामने.
भारती
भारतीय
सरनेम
ऐसे लगाते हैं जैसे
ये ही स्वदेशी रह गे,
बाकि सब विदेशी सै.
रही पई कसर बाबा नै काढ ली
सीधे डोनेशन मांगै सै,
भीख छोड़ कै.
हमनै न्यूं कहैंगे,
काम क्रोध मद लोभ अहंकार विकार..सै,
और इनके खुद खातिर..
ये ही असल संस्कार सैं ,
गर भगवान ईश्वर अल्लाह मसीह
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे में होते है.
सब गृहस्थियों के घरां मै के बडः रहया सै.
थम भी उडः चालो ..कौण रोकै सै.
इस प्रभु की लीला.. इना मीना डीक्का नै कोण संभालेगा.
लड़का लड़की में भेद की संस्कृति जाण ल्यो,
लड़का होते ही.
खुशी इस तरह मनावेंगे,
जणै सारी पौधै अकेले ही लावेगा,
मुक्त बनो !
धर्म खुद नहीं चाहता !
तुम धार्मिक बनो !
बस इंसान बनो !
इंसानियत और इंसाफ को चुनो !
इब तक तै सतयुग आया नहीं.
पर समझें खुद को ..
खुलकर यानि बंधन-मुक्त होकर ?
जिंदगी जीऐं ?
आ जावेगा ..लागे रहो ?
~डॉ_महेन्द्र
महादेव क्लिनिक मानेसर हरियाणा.