” हासिल कुछ कर जाऊँ ” !!
पुलक रहा है तन मन ऐसा ,
लहर लहर लहराऊँ !!
पैर नहीं है आज जमीं पर ,
पंछी सा मन चहके !
आसमान भी छू ही लूँगी ,
कदम नहीं हैं बहके !
जगी उमंगें पोर पोर हैं ,
कुछ पा जाना चाहूं !!
आज लगे है मिटे फासले ,
धड़कन गीत सुनाए !
मौसम भी पुलकित लगता है ,
जागी दसों दिशाएं !
आज घटित जो हुआ कभी ना ,
पल पल उसे भुनाउँ !!
जो विरोध के सुर थे सारे ,
हैं बदले से लगते !
अपनों से ही अब डर लागे ,
दूजे कम हैं ठगते !
उहापोह है अजब गजब सी ,
हासिल कुछ कर जाऊँ !!
बृज व्यास