हावड़ा से नेपाल
डायरी :- 5(14) हिन्दी कविता :-
-: ?? हावड़ा से नेपाल । :-
हावड़ा में पकड़े 13021 मिथिला एक्सप्रेस ,
मिथिला की हिस्सा , बिहार और नेपाल मिलाकर है शेष ।
हावड़ा में देखें दो हजार अठारह की कैलेण्डर ,
चलें आये बैण्डेल ।
बैण्डेल में मिला गेहूं धान ,
चले गये बर्द्धमान ।
बर्द्धमान में खरीदें गुलाब की फूल ,
इसके बाद आये दुर्गापुर ।
दुर्गापुर में सब हमको पकड़ने के लिए लगाया दौड़ ,
क्या कहूं मैं न ट्रेन दौड़ते दौड़ते आ गया आसनसोल ।
आसनसोल में वह होंठों पर मुस्कान ली ,
इसी तरह आ गये जे .सी. डी ।
जे .सी. डी में खाये बाबा बैद्यनाथ के प्रसाद गुड़ ,
आ गये हम रोशन मधुपुर ।
मधुपुर में आवाज़ आई कलकत्ता से वापस गांव आ जा ,
हम झा चले गये झाझा ।
झाझा में खाना खाने के बाद पोंछने के लिए
निकाले गमछा टौनी ,
आ गये गंगा नदी सिमरिया घाट पार बरौनी ।
बरौनी में गये पांव धोने लगा था धुल ,
आ गये समस्तीपुर ।
मुजफ्फरपुर तक कुछ न किया ,
कल से आज तक ये कविता
लिखते – लिखते आ गये चकिया ।
चकिया में हुए थोड़ा खड़ा ,
चलें गये पीपरा ।
धीरे-धीरे हो रही थी सीट खाली ,
क्योंकि पहुंच चुके थे हमलोग बापूधाम मोतिहारी ।
मोतिहारी में रही मिठास बोली ,
हम लोग पहुंच गये संगोली ।
संगोली में सामने से कटकर पीछे लगा इंजन ,
सफलता की राह में बदल सकते है हर कोई अपना मन ।
संगोली में मेरे कर्म पर आपस में लोग कुछ रहा था बोल ,
मैं इस तरह हावड़ा से पहुंच गया मिथिला के रक्सौल ।
रक्सौल के टमटम से पार किये भारत नेपाल की सीमा ,
कहीं-कहीं कारवाई थी, टमटम तेज गति से भाग रही थी
कहां थी चाल धीमा ।
इस तरह पहुंच गये वीरगंज नेपाल ,
आज देख लिए मित्र राष्ट्र की एकत्रा की हाल ।।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता भारत
मो :- 6290640716 ,
12-03-2018 सोमवार :-5(14)
21-05-2020 गुरुवार कविता :-16(38)
Pmkvy :-4 बाद डायरी :- 5