हाल हुआ बेहाल परिदे..!
हाल हुआ बेहाल परिदे,
जीवन है जंजाल परिंदे।
जितने काले चिट्ठे उसकी,
उतनी मोटी खाल परिंदे।
भर भर आंसू रोता फिरता,
लगता है घड़ियाल परिंदे।
माँ ने डाँट दिया थोड़ा सा,
जा बैठा ससुराल परिंदे।
हालत जाने कब सुधरेगी,
गुजरे सालों साल परिंदे।
है दाड़ी में तिनका जिनकी,
ठोक रहे वो ताल परिंदे।
रोज नई है एक समस्या,
हों कैसे खुशहाल परिंदे।
नेकी कर कर जो भी पाया,
सब दरिया में डाल परिंदे।
गर्म मिज़ाजी लहज़ा रख कर,
मत दुश्मन तू पाल परिंदे।
बिन महनत के दाना पानी,
निश्चित कोई चाल परिंदे।
जिनके सर पर सच की गठरी,
वो ही मालामाल परिंदे।
“पंकज शर्मा “परिंदा”