हालात
राहें सूनी, गलियाँ सब वीरान हो गए हैं
जिंदा लाशों से देखो अब इंसान हो गए हैं।।
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खून से लथपथ हाथ,ज़मीर हैं मरे हुए
ग़ौर से देखो दिल इनके श्मशान हो गए हैं।।
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नहीं किसी की चीख़-पुकार सुने कोई
गूँगे-बहरे देखो इनके अब कान हो गए हैं।।
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बस खुद की जेबें भरते हैं ये देखो
सफ़ेदपोश ये नेता सब बेईमान हो गए हैं।।
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चप्पे-चप्पे पे पड़ी हैं बिखरी लाश यहाँ
गहरी नींद में मंदिर के भगवान हो गए हैं।।
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नफ़रत की अब बू आती सब चेहरों से
प्रेम गुलिस्तां अब जंग के मैदान हो गए हैं।।
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ये कैसी आबो-हवा “दीप” ये मंज़र कैसा
क्यों जानबूझकर सब इतने अनजान हो गए हैं।।
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कुलदीप दहिया “मरजाणा दीप”
हिसार ( हरियाणा )