हालात
एक दर्द हृदय को निचोड़ रहा है।
सांसे अटक अटक के चल रहा है
मुख से बोले क्या कुछ तुझे
जिह्वा गले की घुटन में फस रहा है
यादें हर लम्हें की बोली लगा रहा है
एक एक कर सारा अक्स बिखर रहा है
जज्बात भी लाचारी झेले कैसे
अब दामन से सब फिसल रहा है
अब जेहन से सब कुछ विसर रहा है
सुने गलियों में सुध बेसुध टहल रहा है
मैं वही रुका और समय आगे चल रहा है
हसरत बाकी है, अब भी जो वो हलाहल में पल रहा है
अब अपनी जान बचे भी तो कैसे
ये तो जल भी रहा है और बदल भी रहा है
विक्रम कुमार सोनी