हालात ही बदले न खुद को बदल पाये हम……….
हालात ही बदले न खुद को बदल पाये हम
समझी हमें दुनियाँ न उस को समझ पाये हम
किसको फ़ुरसत है जो बैठे पूछे दास्तां
दर्द-ए-दिल से अब तक कैसे उभर पाये हम
धीरे – धीरे फूल छोटे खार बड़े हो गये
वक़्त के साथ इसलिए कम ही महक पाये हम
जानम इक तेरी हसरत हमें बरबाद कर गई
फिसले उस दिन केअब तक न संभल पाये हम
अश्क़ बह के कह गये जानते हैं हम ही ये
आँख के दायरे में कैसे सिमट पाये हम
तक़दीर का लिखा हरगिज़ नहीं मिटने वाला
आग पर चल कर भी देखिए जल न पाये हम
बची खुची उम्मीद ‘सरु’ जाती न रहे दिल से
शायद इस ख़्याल से घर से निकल पाये हम