हालात के तीरों से छलनी है बदन अपने
विषय -हालात के तीरों से छलनी हैं बदन अपने।
बहुत हसरतें थी जिंदगी में अपने।
बहुत देखे थे हसीन सपने।
नागवार जमाने को मंजूर न था।
हालात के तीरों से छलनी है बदन अपने।
नफरतों के दौर झेलें हैं इतने।
अर्श पर सितारे चमकते हैं जितने।
खाक में मिला दिए जाम जवानी के।
टूटे टुकड़े आईने से देखे ख्वाब अपने।
मंजिल तक पहुंचकर गिरे हैं ऐसे।
अर्श से फर्श पर पत्थर गिरते हैं जैसे।
अपनों को भी दूर होते देखा हमने।
लड़खड़ाते कदमों को गिराते हैं अपने।
किस से गिला शिकवा करें, किससे करें बातें।
चिराग ग़मो के जलते हैं पर अंधेरी रातें।
आंखों में धुआं धुआं खाक हो रहे सपने।
हालात के तीरों से छलनी है बदन अपने।
ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश।