हार स्वीकार कर
हार स्वीकार कर
कंटक-पथ है पद धर
ना फिकर कर
टेढे़-मेढे़ रास्तों का
बढ़ धीरज धर
ओ पथिक स्वेद बहा
अटल बन
चढ़ दिशा निरंतर
हो निशा में भी
तमस को पार कर|
गिरना लुढ़कना फिर चढ़ना,
ओ पथिक हार स्वीकार कर||
जीतना है जरूरी किन्तु
हारना भी है
स्वयं को ज्वाला-धार में
उतारना भी है
तज कर प्रेम,मोह,घर
एकान्त मन सहारा कर
धार मुश्किल सागर की
हाथों से नाव किनारा कर
बाना गंभीर आचरण का
ले स्वयं से प्यार कर|
जब पाना है अटल मँजिल,
ओ पथिक हार स्वीकार कर||
यह कुसुम निराले
चकाचौंधी के
पथ से यूँ भटकाए
वो मधुप तन्हा
कितना सच्चा
गीत बुलंदी नित्य गाए
कलियाँ देगी स्नेहाशीष
फूलवारी बागानों में
तब होगा विजय-नाद
कच्चे तेरे मकानों में
असहज मंजिल पाकर
हल्का कंधे का भार कर|
खिले चेहरा टूटा हुआ
ओ पथिक हार स्वीकार कर||
रोहताश वर्मा मुसाफिर