हार में जीत है, रार में प्रीत है।
हार में जीत है, रार में प्रीत है।
हो कहीं भी मगर, मन में ही मीत है॥
याद आएगी तेरी, भला क्यों हमें।
मेरे मन में बसे, जब तेरे गीत है॥
यूं तो कहते हो हमको, भुला दीजिए,
गम से दामन को अपने, छुड़ा लीजिए।
पर ये तुमको भी रहती सदा आरज़ू,
हमपे नजरें इनायत किया कीजिए॥
राज जो कह दिया तो रहा राज न,
तेरे बिन अब तो होता कोई काज न।
अब मेरे दिल पे छाई हुकूमत तेरी,
अब तो सजता तेरे बिन कोई साज न॥
तुम तो रहते हो सांसों में बनके हवा,
मुझपे करते करम जैसे कोई दवा।
तेरी खुशबू से महका मेरा आशियां,
रब की रहमत हो या खुद है रब मेहरबां॥
तुमने मुझको गले से लगाया नहीं,
पास अपने कभी भी बुलाया नहीं।
न ही हमसे कभी प्रेम की बात की,
फिर भी कहते हैं हमने भुलाया नहीं॥
मन में रहते हैं जैसे हों, मन साधिका,
श्याम के उर में रहती हैं, ज्यों राधिका।
तुमको चाहूं या पूजूॅं, है दुविधा सदा,
तुम हो मेरे लिए, शुभ फलदायिका॥
-✍️ निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
छतरपुर मध्यप्रदेश 9752606136