हार नहीं जाना
चल भूल चलें सारी जो बात सताती है।
अब बात करे वह जो उल्लास जगाती है।।
मन हार नहीं जाना यह भाव रहे मन में ।
जब जीत मिले उसको मन देख खिलाती है।।
तुम प्राण अधारे हो यह बात जरा सुन लो।
नित राह तकें अखियाँ दिन रैन बिताती है।।
यह आस करो पूरी मन देख बसा मेरे ।
अब आप दरस देदो यह नित्य मनाती है ।।
जग रीत चली कैसी सब लोग डरे लगते।
कब घात चले कोई भय नित्य बढ़ाती है ।।
तन साँस चले कबतक यह देख पता किसको।
पथ सत्य सदा चलना यह नीति सिखाती है।।
सब भूल चले यह भी धन साथ नहीं जाता।
तन राख बने ये है बस कर्म सँगाती है ।।
मत चाह कभी करना जो राह नही सत का।
बस राह चलो सत पर भव पार लगाती है।।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली