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26 Feb 2022 · 1 min read

*हार डाले चल पड़े (गीतिका)*

हार डाले चल पड़े (गीतिका)
■■■■■■■■■■■■■■■
(1)
जो बड़े थे , हार डाले चल पड़े
तख्तियाँ नौकर सँभाले चल पड़े
(2)
कार्यकर्ता आजकल भाड़े के हैं
जो जरूरत ,उतने पाले चल पड़े
(3)
नाप शाही-अचकनों का जाँचकर
पेट को उतना निकाले चल पड़े
(4)
नेतागिरी में फायदा था इसलिए
नौकरी में डाल ताले चल पड़े
(5)
पाँच सालों के लिए कुर्सी मिली
सो कमाने जीजा-साले चल पड़े
(6)
मिल अगर जाता टिकट तो ठीक था
कट गया ,ले झंडे काले चल पड़े
■■■■■■■■■■■■■■■■
रचयिता: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451

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