Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Mar 2017 · 2 min read

हाय री बिटिया

कविता —

शादी के जोड़े का फंदा बनाकर
एक बेटी मर जाती है फाँसी लगाकर
बेटी तो मर गई उसकी आत्मा पसर गई
रो-रोकर कभी सुबक-सुबक कर कभी
चिल्ला-चिल्ला कर पूछे समाज से हज़ारों सवाल —-

क्यूँ किया गया मेरे साथ जघन्य कुकृत्य ?
क्यूँ किया गया मेरे संग अक्षम्य अपराध ?
क्यूँ किया गया मेरे संग विवेक हीन कुकर्म ?
क्यूँ किए गये मेरे संग इतने जुल्म-ओ-सितम ?
क्यूँ होना पड़ा मजबूर खुदकुशी के लिए ?
क्यूँ मैं तरसती रही सदा खुशी के लिए ?
मैं भी तो किसी की दुलारी बेटी थी !
मैं भी तो किसी की प्यारी बहन थी !
मैं भी तो किसी आँगन की कली थी !
मैं भी तो किसी के घर की मर्यादा थी !
फिर क्यूँ बन गए सब मेरे ज़ालिम बेरहम ?

बेटी की आत्मा
ना मिल सकी परमात्मा से
दर-दर भटकती, घर-घर गरजती
कभी मैदानों में
तो कभी सुनसानों में
कभी राहों में तो कभी चौराहों में
ऐसे भटते-भटते वो पहुँचती है अपने घर पे
और खड़ी होती है अपने बाप के आगे
और पूछती है एक हृदय विदारक सवाल —
बापू मैं तो तेरे आँगन की कली थी
जैसे-तैसे मैं तेरे घर में भली थी
फिर क्यों तूने मुझको ब्याहा
पराया पुरूष संग पराये घर में पठाया
कैसे निर्दय, बेदर्द, जालिमों के घर बैठाया ??
बूढ़ा बाप सुनके सवाल
कुछ ना कह पाया
फुट-फुट कर रोया और पछताया

जब आत्मा बेचारी
ढूढ़ती है माँ को मारी-मारी
तब ढूढ़ ना पाती है माँ को दुलारी
फिर लौट के आती है अपने बापू के अगाड़ी
और पूछती है ” बापू ! माँ कहाँ हैं,
माँ दीखती नहीं है ?”
तब बाप भी फफक-फफक कर रो पड़ता है
और रोते-रोते कहता है —-
“तेरी माँ तो तेरे दु:ख में पागल हो गई
तेरे मरने के ग़म में हम सबको छोड़ गई ”
इतना सुनते ही बेटी की आत्मा
वहाँ रुक नहीं पाती है
भैया को खोजने अन्य कमरों में
चली जाती है

उसका भैया बेहोश खाट पर पड़ा था
अपनी बहन की मौत के गम में डूबा था
” भैया ! भैया ! ” की आवाज़ सुन कर वह
हडबड़ा जाता है
“कौन ? कौन ?” हड़बड़ाहट में पूछ बैठता है
“आपकी बहन– अनु !”
बेटी की आत्मा कह पड़ती है —
” भैया, मैं अनु की आत्मा हूँ
आप सबों के लिए मैं सपना हूँ
उन जालिमों ने मुझको बहुत सताया
एक-एक खुशी के लिए मुझको तरसाया
वे सारे बड़े जालिम और बे-दर्द इंसान थे
वे बहशी, दरिंदे, बड़े जुलमी हैवान थे
आप उनको कभी छोड़ना नहीं
मुझे न्याय दिलाने से मुँह मोड़ना नहीं
आप कुछ ऐसा कर के ही छोड़ना
नारी को समाज में समता से जोड़ना
उसके मान-सम्मान को लौटा कर
ही तुम अपना दम तोड़ना !”

===============
दिनेश एल० ” जैहिंद”
11. 02, 2017

Language: Hindi
245 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
भोले शंकर ।
भोले शंकर ।
Anil Mishra Prahari
*रामचरितमानस में अयोध्या कांड के तीन संस्कृत श्लोकों की दोहा
*रामचरितमानस में अयोध्या कांड के तीन संस्कृत श्लोकों की दोहा
Ravi Prakash
■ देसी ग़ज़ल...
■ देसी ग़ज़ल...
*Author प्रणय प्रभात*
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
अफसोस मुझको भी बदलना पड़ा जमाने के साथ
अफसोस मुझको भी बदलना पड़ा जमाने के साथ
gurudeenverma198
तृष्णा उस मृग की भी अब मिटेगी, तुम आवाज तो दो।
तृष्णा उस मृग की भी अब मिटेगी, तुम आवाज तो दो।
Manisha Manjari
प्रकृति ने अंँधेरी रात में चांँद की आगोश में अपने मन की सुंद
प्रकृति ने अंँधेरी रात में चांँद की आगोश में अपने मन की सुंद
Neerja Sharma
फुटपाथ
फुटपाथ
Prakash Chandra
🌹मेरे जज़्बात, मेरे अल्फ़ाज़🌹
🌹मेरे जज़्बात, मेरे अल्फ़ाज़🌹
Dr Shweta sood
ऐसे कैसे छोड़ कर जा सकता है,
ऐसे कैसे छोड़ कर जा सकता है,
Buddha Prakash
वफ़ा
वफ़ा
shabina. Naaz
पैसा ना जाए साथ तेरे
पैसा ना जाए साथ तेरे
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
सुहासिनी की शादी
सुहासिनी की शादी
विजय कुमार अग्रवाल
माँ की छाया
माँ की छाया
Arti Bhadauria
अपनी गजब कहानी....
अपनी गजब कहानी....
डॉ.सीमा अग्रवाल
"प्रेमी हूँ मैं"
Dr. Kishan tandon kranti
काली मां
काली मां
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
समझ
समझ
Shyam Sundar Subramanian
दोहा
दोहा
प्रीतम श्रावस्तवी
ਹਾਸਿਆਂ ਵਿਚ ਲੁਕੇ ਦਰਦ
ਹਾਸਿਆਂ ਵਿਚ ਲੁਕੇ ਦਰਦ
Surinder blackpen
हम बेजान हैं।
हम बेजान हैं।
Taj Mohammad
इस धरती पर
इस धरती पर
surenderpal vaidya
वोट का सौदा
वोट का सौदा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
मुझे     उम्मीद      है ए मेरे    दोस्त.   तुम.  कुछ कर जाओग
मुझे उम्मीद है ए मेरे दोस्त. तुम. कुछ कर जाओग
Anand.sharma
ईद आ गई है
ईद आ गई है
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
किसी को नीचा दिखाना , किसी पर हावी होना ,  किसी को नुकसान पह
किसी को नीचा दिखाना , किसी पर हावी होना , किसी को नुकसान पह
Seema Verma
मैं को तुम
मैं को तुम
Dr fauzia Naseem shad
ज़माने की निगाहों से कैसे तुझपे एतबार करु।
ज़माने की निगाहों से कैसे तुझपे एतबार करु।
Phool gufran
समय के साथ ही हम है
समय के साथ ही हम है
Neeraj Agarwal
2591.पूर्णिका
2591.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
Loading...