हाय! बड़े दर से छोटे घर में आ गए
22 + 22 + 22 + 22 + 22 + 2
हाय! बड़े दर से छोटे घर में आ गए
गाँव के पन्छी बेकार शहर में आ गए
सीने में ही दफ़न थे जो राज़े-उल्फ़त
वो अफ़साने भी सबकी नज़र में आ गए
बहके हुए जज़्बात ग़ज़ल में ढ़लते रहे
दिल से निकले जो शे’र बहर में आ गए
साथ मिला जो तिरा, आँखों से पीते रहे
दिल के अरमां यूँ खुद ही लहर में आ गए
डिग्री कॉलेज की यूँ ही गंवाये हम भी
कुछ न बने तो यारो दफ़्तर में आ गए
आज़ाद कहाँ थे हम, दास रिवाज़ों के
अब क़ैद से छूटे तो अम्बर में आ गए