हाय इश्क
हाय इश्क़ में मैंने अपना नाम तक बदल डाला,
थी वो एक नवयौवना एक सुन्दर सी बाला।
नैन नक्श थे प्यारे प्यारे रंग था उसका साँवला,
मेरी मत मारी गई थी मैं हो गया था बावला।
उठने बैठने, नहाने धोने का सब वक्त बदल डाला,
आना जाना अब हर जगह उसके हिसाब से कर डाला ।
घर पे अक्सर वो रहा करती थी अकेली,
ढूंढने पे भी उसकी हमें मिली ना कोई सहेली।
सारा समय अपना वो फेसबुक पे बिताया करती थी,
हमसे कतराती थी मगर फेसबुक पे जाने किससे बतलाया करती थी ।
एक दिन उसकी फेसबुक आई डी मुझको खुली मिल गई,
उसके प्रेम प्रसंगो की उस दिन सारी पोल खुल गई ।
इंटरनेट पर उसके एक से ज्यादा फ्रेंड थे,
प्यार करने के उसके कुछ अडल्ट से ट्रेंड थे ।
सोने से पहले इंटरनेट पे जाने कैसी बातें करती थी,
फिर देर तक वो बिस्तर पे करवटें बदला करती थी।
महँगा पड गया था मुझको इश्क़ का ये सौदा,
उस दिन पता चला एक से उसका क्या होगा।
गलती हुई मुझसे कि उससे मैं प्यार कर बैठा सच्चा,
उसने मुझको समझ लिया इश्क के स्कूल का बच्चा।
एक बार वो मुझको अपनी ज़रूरत बतला देती,
मेरे सिवा फिर वो किसी का नाम नहीं ले पाती।
उसके प्यार करने का तरीका ही था खराब,
कुछ दिन मैंने गम में पी थी थोड़ी शराब।
अक्ल आयी तो पता चला गलती हो गई भारी,
जिसे मैंने प्यार समझा वो निकली एक बीमारी।
अब तो उसके नाम से भी मुझको लगता है डर,
अब घर में ही रहता हूं निकलता नही बाहर।
हाय अपना हाल ये मैंने क्या कर डाला,
हाय इश्क में मैंने अपना नाम तक बदल डाला