हाफ डे
सुबह-सुबह मनहूस ख़बर मिली, पड़ोस के चौहान साहब गुज़र गए। छह महीने पहले सेवानिवृत हुए थे। विनोद नगर में अपना 25 गज का प्लाट बेचकर, खोड़ा कॉलोनी में सौ गज प्लाट लेकर अपना तिमंज़िला मकान बनवाया था। पिछले हफ़्ते ही उन्होंने गृह प्रवेश किया था। टेन्ट लगाकर सबको दावत दी थी। तीनों बेरोज़गार लड़कों के नाम पर एक-एक मंज़िल कर दिया था। उनका मरा हुआ चेहरा देखा तो एक सुकून दिखाई देता था। परिजन विलाप कर रहे थे। जब लाश को श्मशान ले जाने के लिए तैयार किया गया। “राम नाम सत्य है।” आवाज़ें गूँज रही थी।
पड़ोसी होने के नाते मुझे भी निकलना पड़ा और सुपरवाइजर को मोबाइल पर बता दिया था कि मैं आज हाफ डे आऊंगा। बड़े टेम्पो (टाटा 407) में बीस-पच्चीस आदमी लाश सहित चढ़ गए। बाक़ी उनके कुछ रिश्तेदार अपनी-अपनी गाड़ी से आ रहे थे। बॉडी बीचों-बीच रखी थी। बातें ज़ारी थी।
“कितने खुश थे, मकान बनवाकर चौहान साहब!” एक बोला, “अपनी सारी पूँजी, सेवानिवृति का पैसा लगा दिया था मकान में!”
“ज़बरदस्त पार्टी दी थी, मटन-चिकन, मटर पनीर सभी कुछ था, दारू भी फ़ौजी कैन्टीन से मंगवाई थी।” दूसरे ने कहा।
“बड़े भले आदमी थे, किसी से भी ऊँची आवाज़ में बात करते नहीं देखा।” इसी तरह टेम्पो में सवार लोगों की बातचीत सुनते-सुनते श्मशान तक का सफ़र तय हो गया। निगमबोध घाट के गेट पर अर्थी को पुनः कन्धा लगाकर अन्तिम क्रिया कर्म के लिए ले जाया गया। लाश को जलते-जलते एक घंटा से अधिक समय बीत गया था।
मैंने घड़ी देखी तो लगा यदि अभी नहीं निकला तो हाफ डे तक नहीं पहुँच पाऊँगा। और उनके पुत्रों से विदा लेकर मैं हाफ डे बचाने के लिए मैं सीधा श्मशान घाट से ही दफ़्तर पहुँचा। दफ़्तर में मेरे सहयोगी मुकेश शर्मा जी अचानक सामने आये तो मैंने उनसे हाथ मिलाया।
“और महावीर जी आज हाफ डे में कहाँ से आ रहे हो?” शर्मा जी ने पूछा तो मैंने सारी कहानी कह सुनाई।
“बड़े देवता आदमी थे चौहान साहब!” मैंने अन्त में ये वाक्य कहे तो मुकेश जी भड़क उठे।
“यार तुम अजीब पागल हो, श्मशान घाट से सीधे ही ऑफिस चले आये। घर से नहा-धोकर आते!”
“नहाने घर जाता तो हाफ डे नहीं बच पाता।” मैंने पण्डित जी को समझाया।
और मुकेश जी हाफ डे लेकर घर चले गए।
“तुमने तो अपना हाफ डे बचा लिया और उस बेचारे से हाथ मिलाकर उसका हाफ डे लगवा दिया।” ग्रुप लीडर राधा बल्ल्भ बोले।
“मुझे नहीं पता था कि श्मशान से आये आदमी से हाथ मिलाने पर कोई घर चला जायेगा। ये सब अनजाने में हुआ।”
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