*हाथ से निकल जाएगा*
ये बक़्त है , फिर हाथ से निकल जाएगा ।
पता नहीं ये चाँद फिर, कहाँ ढल जाएगा।।
ले लो ना उजाला अभी तुम , इसी हाल में
पता नहीं ये , फिर कहाँ जाके गल जाएगा।।
ये पहियों पे चलता हुआ,समय का दीवाना है
आज दिखा है , तो कल फिर जल जाएगा ।।
और फिर हम भी , जा दवेंगे किस खेत में
जब हमारा जनाजा कभी, दूर निकल जाएगा।।
नींद में जगने की , आदत बना के देखो तो
जिंदगी में एक नया खुर्शीद, हाँ मिल जाएगा।।
खड़े होके ज़मीन पे तुम ,यों ही मछलते रहे
तब तक “साहब”ये अपनी,दिशा बदल जाएगा।।