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8 Feb 2017 · 1 min read

हाथ मुठ्ठी भर चना है

रात दिन चिंता में डूबा, पास जिसके घी घना है
घास पर मैं मस्त बैठा, हाथ मुठ्ठी भर चना है

साथ में जब तक रहे कह न पाए कुछ कभी
दूर होकर लग रहा अब, प्रेम की सम्भावना है

याद की बदली ने आकर दिल को’ एसा ढक लिया
देख कर तस्वीर उसकी, आज मन कुछ अनमना है

लाख होती वेदनाएं यूँ तो’ इस संसार में
वेदनाओं में विरलतम, बस विरह की वेदना है

है नहीं कम मंदिरों से घर मेरे भगवान का,
रोज ही होती यहाँ माता पिता की वंदना है

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